हिम शिलाखंड पिघलकर
गिरी के शिखर से उतरकर
शीतल जल की ये प्रबल धार
बढ़ती करती हुई भीषण नाद !
गिरी के छाती को चीर कर
शिला चट्टानों को तोड़ कर
करती नूतन पथ का निर्माण
बढ़ती रहती प्रति क्षण अविरल !
करती नूतन पथ का निर्माण
बढ़ती रहती प्रति क्षण अविरल !
उठता फेनिला ये सफेद झाग
क्या है तेरे ह्रदय का उन्माद ?
कहाँ जाने को इतनी आकुलता
है क्या कोई प्रतीक्षारत ?
Asha Prasad "ReNu"
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