Poems from my heart to touch your heart
Saturday, September 8, 2012
कल्पना
नयन से नींद उड़ कर,
रजत चाँदनी के साथ चली !
दूर नगर के कोलाहल से,
दूर परिजनों के घर से !
शीतल झड़ते निर्झर के,
वन-हरियाली के ऊपर से !
भीनी-भीनी रजनीगंधा के,
मादकता में मदमायी सी !
चली चाँद से मिलने को,
तारागण के बीच भ्रमायी सी !
Asha Prasad "Renu"
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