दिल हो गया है बंजर,
हर रिश्ता यहाँ शुष्क है !
मंदिर-मस्जिद की बस्ती है यह,
यहाँ इन्सानियत ख़ुदग़रज़ है !
गगनचूंबी इमारतों में यहाँ,
दम तोड़ रहा ईमान है !
शिला को नहलाते हैं दूध से,
क्षुधा से व्याकुल नन्हीं जान है !
मज़हब के नाम पर हलाल होते हैं लोग,
क्या ख़ुदा का यही पैग़ाम है?"ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"
हर रिश्ता यहाँ शुष्क है !
मंदिर-मस्जिद की बस्ती है यह,
यहाँ इन्सानियत ख़ुदग़रज़ है !
गगनचूंबी इमारतों में यहाँ,
दम तोड़ रहा ईमान है !
शिला को नहलाते हैं दूध से,
क्षुधा से व्याकुल नन्हीं जान है !
मज़हब के नाम पर हलाल होते हैं लोग,
क्या ख़ुदा का यही पैग़ाम है?"ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"
No comments:
Post a Comment