मै हूँ एक नन्हीं सी अनमोल,
नवरचित,नववधू सी सजी,
पूरब की अरुणाई की ओढ़े चूनर,
मखमली दूब पर छुईमुई सी खड़ी,
नवरचित,नववधू सी सजी,
पूरब की अरुणाई की ओढ़े चूनर,
मखमली दूब पर छुईमुई सी खड़ी,
सतरंगी आभा बिखेरती ओस की बूंद !!
पंछियों ने गाये अभिनंदन गीत,
चटकती कलियों ने बिखेरी सुरभि
पुष्प दलों का बना सिंहासन,
जहाँ बैठी उसी को दीप्तिमान करती,
अपने भाग्य पर इठलाती ओस की बूंद!!
स्पर्श मात्र से बिखरने वाली,
एक मिथ्या सी प्रतीत होती,
सूरज की तेज होती रौशनी के साथ,
शोकाकुल धीरे धीरे विलुप्त होती,
स्वयं के अस्क की तरह ओस की बूंद!!
अपने पीड़ा पर तरस करती हुई,
असुरक्षित, विकल और कंपित,
प्रचंड सूरज के ताप में जलती हुई,
प्रभाकर की प्रभा के आगे बेबस,
महाशून्य में समाती ओस की बूंद!!
(क्षणभंगूर जीवन पर अहंकार न करने का
पाठ पढ़ाती मैं हूँ एक नन्हीं सी ओस की बूंद) "ReNu"
पंछियों ने गाये अभिनंदन गीत,
चटकती कलियों ने बिखेरी सुरभि
पुष्प दलों का बना सिंहासन,
जहाँ बैठी उसी को दीप्तिमान करती,
अपने भाग्य पर इठलाती ओस की बूंद!!
स्पर्श मात्र से बिखरने वाली,
एक मिथ्या सी प्रतीत होती,
सूरज की तेज होती रौशनी के साथ,
शोकाकुल धीरे धीरे विलुप्त होती,
स्वयं के अस्क की तरह ओस की बूंद!!
अपने पीड़ा पर तरस करती हुई,
असुरक्षित, विकल और कंपित,
प्रचंड सूरज के ताप में जलती हुई,
प्रभाकर की प्रभा के आगे बेबस,
महाशून्य में समाती ओस की बूंद!!
(क्षणभंगूर जीवन पर अहंकार न करने का
पाठ पढ़ाती मैं हूँ एक नन्हीं सी ओस की बूंद) "ReNu"
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