संभलो ए दिल्ली कि जनता जग गई है,
ठंडी पड़ी लहू आज चिंगारी बन गई है !!
गाँधी-गौतम की तरह शांत जनता जीती है,
पर शत्रु हठ करे तो रक्त भी वह पीती है !!
वेदना में है जनता दिल्ली गा रही मल्लहार,
मरहम लगाने की बजाय कर रही प्रहार !!
यहाँ भूख से आधी जनता हो रही बेहाल,
वहां छप्पन पकवानों से भरी है तेरी थाल !!
जनता बहाए खून-पसीना तू तिजोरी भर रही है,
इन्हें नसीब पंखा भी नहीं तू ए.सी में सो रही है !!
कुपित जनता के क्रोध से अब बच नहीं पाओगी,
अड़ी रही ए दिल्ली तो धूल-कण बन उड़ जाओगी !!
Asha Prasad "ReNu"
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