आग बरस रहा अंबर से ,
धरती बन गई तंदूर !!
पवन देव के तांडव ने ,
दुश्वार किया जीना है !!
गरम लू के थपेड़ों से ,
धरती बन गई तंदूर !!
पवन देव के तांडव ने ,
दुश्वार किया जीना है !!
गरम लू के थपेड़ों से ,
झुलस रहे पशु -पक्षी हैं !!
सूख रहे हैं ताल-तलैया ,
तड़प रहे जल-जंतु हैं !!
....प्रकृति के इस प्रचंड रूप के,
....जिम्मेदार कहीं न कहीं हम भी हैं !!
न ही काटें हम पेड़ों को ,
न ही कटने दे पेड़ों को !!
आकर्षित कर ये बादल को ,
बारिश लाते हैं धरती पर !!
आओ मिलकर पेड़ बचाएं ,
पेड़ लगायें , जीवन बचाएं !!
सूख रहे हैं ताल-तलैया ,
तड़प रहे जल-जंतु हैं !!
....प्रकृति के इस प्रचंड रूप के,
....जिम्मेदार कहीं न कहीं हम भी हैं !!
न ही काटें हम पेड़ों को ,
न ही कटने दे पेड़ों को !!
आकर्षित कर ये बादल को ,
बारिश लाते हैं धरती पर !!
आओ मिलकर पेड़ बचाएं ,
पेड़ लगायें , जीवन बचाएं !!
Copyright© reserved by
Poetess Asha Prasad "ReNu"
No comments:
Post a Comment