हे श्रुतदेवी, तुम मुझको वर दे कोई ऐसा,
शब्द-हिमालय से निकालूँ कोई ऐसी गंगा,
जो ध्वनि मात्र से कर दे सबके मन को चंगा ।
बारिस हो शब्दों की चटके नवकोपलें ऐसा,
महक उठे हृदय-उपवन रजनीगान्धा जैसा ।
कोमल शब्द-सुरों से बनाऊँ एक अनोखा राग,
वीणा के सप्त स्वर से फूटे प्रेम की धार ।
कोमल शब्द-सुरों से बनाऊँ एक अनोखा राग,
वीणा के सप्त स्वर से फूटे प्रेम की धार ।
बोऊं शब्द-बीज धरा में जो पेड़ उगाये ऐसा,
जीवन को दे विश्राम क्षुधा तृप्त करे मन का ।
रंग-बिरंगी शब्द-मोतियों से बनाऊं माला,
जिसमें लगे हों एकता का अटूट धागा ।
फूकूं शब्द-शंख जिससे शंख-नाद हो ऐसा,
ॐ शांति शब्द से गूंज उठे ब्रह्माण्ड समूचा ।
हे श्रुतदेवी, तुम मुझको वर दे दे अब ऐसा.....
Asha Prasad "ReNu"
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