राही अकेला बढ़ता चल तू,
गाता चल जीवन का गीत !
मुड़ कर पीछे देख न अब तू,
दूर है तेरी मंजिल मीत !
सुरभि लुटाया तब पुष्पों ने,
गीत प्रीत की है पहचानी !
जीवन का मधुमास लुटाकर,
पता जीवन का सार प्राणी !
बुझता जलता कहता जुगनू ,
गिरना सम्भालना मेरे मीत !
राही अकेला बढ़ता चल तू....
अग्नि में जब तपता सोना,
तब जाकर बनता कुंदन !
प्रहार सह-सह कर ही लोहा,
पता है सुआकृति नवीन !
घटता-बढ़ता चाँद ये कहता,
दुःख-सुख है जीवन की रीत !
राही अकेला बढ़ता चल तू....
कष्ट और बाधा नहीं बलशाली,
होता कोई धीरज से बढ़कर !
भाग्य नया लिख ले तू अपना,
भाग्य विधाता खुद बनकर !
ऊपरवाला जितना नाच नाचा ले,
रोक न पायेगा तुम्हारी जीत !
राही अकेला बढ़ता चल तू ,
गाता चल जीवन का गीत ! "ReNu"
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