Wednesday, December 26, 2012

नारी

अबला बेचारी कहलाते रहे 
हम इतिहास के अध्याय में !! 
मूक हो अपमान सहते रहे
हम सदियों से इस देश में !!

उपेक्षित रहे, शोषित रहे 

सहिष्णुता बना अभिशाप है !!
अपनी इस कायरता पर 
आत्मा धिक्कार रही आज है !! 

आत्मा को लहूलुहान करते रहे 

हिंस्र पशु बन कर बड़े गर्व से !!
पिघला नहीं पैशाचिक हृदय 
हमारी मार्मिक चीख-पुकार से !!


दबा हुआ आक्रोश जिस दिन 
बन कर ज्वालामुखी फूटेंगी !! 
संयम छोड़, निर्भीक हो नारी 
पाशविक नर का संहार करेंगी !! "ReNu"

                             Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"
       

No comments:

Post a Comment