Wednesday, September 26, 2012

राही अकेला बढ़ता चल तू


राही अकेला बढ़ता चल तू,
गाता चल जीवन का गीत !
मुड़ कर पीछे देख न अब तू,
दूर है तेरी मंजिल मीत !

सुरभि लुटाया तब पुष्पों ने, 

गीत प्रीत की है पहचानी !
जीवन का मधुमास लुटाकर,
पता जीवन का सार प्राणी !
बुझता जलता कहता जुगनू ,
गिरना सम्भालना मेरे मीत !
राही अकेला बढ़ता चल तू....

अग्नि में जब तपता सोना,
तब जाकर बनता कुंदन !
प्रहार सह-सह कर ही लोहा,
पता है सुआकृति नवीन ! 
घटता-बढ़ता चाँद ये कहता,
दुःख-सुख है जीवन की रीत !
राही अकेला बढ़ता चल तू....

कष्ट और बाधा नहीं बलशाली,  
होता कोई धीरज से बढ़कर !
भाग्य नया लिख ले तू अपना, 
भाग्य विधाता खुद बनकर !
ऊपरवाला जितना नाच नाचा ले, 
रोक न पायेगा तुम्हारी जीत !
राही अकेला बढ़ता चल तू ,
गाता चल जीवन का गीत ! "ReNu"

                            Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"





2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना रेनू जी....

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    1. धन्य अहोभाग्य हमारे
      जो आप यहाँ पधारे
      बना ऐसा नहीं कोई शब्द
      जिससे आभार प्रकट करें हम... :)

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