Tuesday, September 18, 2012

देखा मैंने स्वप्न सवेरे


देखा मैंने स्वप्न सवेरे,
तुमको मधु मुस्कान बिखेरे !
मंत्र मुग्ध अपलक नयनों में,
बस गई आके छवि तुम्हारी !

भाल सूर्य सा दीप्तिमान,
चाँद सा शीतल मुस्कान !
मद भरे मधुप्याले दो नयन, 
मनोमुग्धकारी सुछवि तुम्हारी ! 

दूर देश में तुम रहनेवाले,
सपनों में केवल मिलते हो
मिलन का यह मार्ग हमारा,
खुलता है एकमात्र सपनों में !

स्वप्नलोक में कोई बंधन नहीं 
प्रीत पर कोई प्रतिबंध नहीं !!
रोक पता नहीं यहाँ ईश्वर भी,
दो प्राणों का सुमधुर मिलन !!  "ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"

 

2 comments:

  1. Indeed a good collection of Hindi poems.
    Enough to publish a book by now. Need a learned Hindi Shastri to evaluate these.

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  2. Thank u very much for ur wonderful compliment... :)

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