Sunday, October 6, 2013

*मन*

ओ, मानव तू क्यों भागे हैं
मन के पीछे-पीछे…….
छलिया है यह छल लेगा ,
पल-पल रास्ता बदलेगा ।
कभी शिखर चढ़ जायेगा ,
कभी भू-गर्भ जा बैठेगा ।
थक जायेगा, गिर जायेगा ,
इसके पीछे भागते-भागते ।
ओ, मानव तू क्यों भागे हैं
मन के पीछे-पीछे…….

मन के आगे हो जाता है ,
प्रकाश-गति भी धीमी ।  
पलभर में यह सैर करा दे ,
तुमको पूरे ब्रह्मांड की ।
भूत-भविष्य में ले जायेगा ,
मदारी बनके नचायेगा ।
बन्दर बनकर रह जायेगा ,
इसके पीछे नाचते-नाचते ।
ओ, मानव तू क्यों भागे हैं
मन के पीछे-पीछे……. "ReNu"


Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu",
जब भी चमन में फूल खिले,
और तितली लुटाये अपना प्यार ।
चाँद बिखेरे जब शीतल किरण ,
और धरती ओढ़े दुधिया चुनर ।
झींगुरों ने जब छेड़े राग यमन ,
पवन के झूले में झूले प्रकृति मगन ।
स्नेह बनकर जब बरसे शबनम ,
ऐसे में
काश! तुम होते प्रियतम । "ReNu"

Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"