Friday, December 28, 2012

मैं टूट गई ... Damini

ओ सियासतदानों कहाँ थे उस समय 
जब मैं इंसाफ के लिए 
जिन्दगी और मौत से जूझ रही थी 
मुझे पता था ..
वहशी दरिंदों ने जो मेरी हालत की थी
ज्यादा दिनों तक मेरा शरीर 
मेरा साथ नहीं देने वाला !
फिर भी मैं मौत से लड़ती रही 
इस उम्मीद में कि जीते-जी मुझे 
इन्साफ मिल जाय और मैं चैन से मर सकूँ !
लेकिन तुम लोगों ने मुझे मुद्दा बनाकर 
अपनी-अपनी रोटी सेंकनी शुरू कर दी !
मैं टूट गई ...
इंसाफ कि उम्मीद ख़त्म हो गई 
शरीर ने साथ देना बंद कर दिया 
आखिर कब तक....
दरिंदगी का शिकार यह शरीर 
इंसाफ कि उम्मीद में मेरा साथ निभाता ...:(((((((


                                             Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"

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