Friday, August 16, 2013

*अभी पूर्ण स्वतंत्रता बाकी है *

स्वार्थ में लिपटे हुए सत्ताधारी ,
भरने में लगे हैं अपना तिजोरी ,
सीमा पर हुए शहीद जो वीर हैं ,
सुध लेते नहीं उनके परिजनों की कभी ,
जबतक शहीदों के शोणित से,
भारत माँ का आँचल भींगेगा ,
तबतक परतंत्रता बाकी है ,
अभी पूर्ण स्वतंत्रता बाकी है !!

पुत्र, पति, भाई के वियोग में,
दहलाता स्त्रियों का रुदन करुण ,
सहमें हुए पित्रहीन मासूमों का,
कौन सुनता है यहाँ अन्तःनाद ?
जबतक विधवाओं के सिंदूर से ,
सत्ता लोलुप्तों का राजतिलक होगा ,
तबतक परतंत्रता बाकी है ,
अभी पूर्ण स्वतंत्रता बाकी है !!

संविधान बनाकर क्या होगा ?
जब अमल नहीं उसपर होगा ,
रह गया है दबकर संविधान ,
मोटी किताब के पन्नों में ,
जबतक यह मुक्त नहीं होगा ,
तबतक परतंत्रता बाकी है ,
अभी पूर्ण स्वतंत्रता बाकी है ,
अभी पूर्ण स्वतंत्रता बाकी है !! "ReNu"


Tuesday, July 30, 2013

"बिटिया"

मेरे घर के आँगन में तुम , 

उधम-चौकरी मचाती हो !!

कभी रोती हो कभी हंसती हो ,

कभी गले में बाहें डाल झूल जाती हो !!

संपूर्ण जगत की मस्ती समेट ,

छोटे से घर में तुम ले आती हो !!

मेरे रिक्त जीवन में "सुरभि" ,

तुम सुरभि भर जाती हो !! "ReNu"


Thursday, July 11, 2013

सनेह संचय कर कलश में,
प्यार लुटाने आज आई !!
अतृप्त रहकर भी जगत की,
प्यास बुझाने मैं हूँ आई !!

रक्त, शव, धुंआ का कोहरा
विश्व में पीड़ा है गहरा !!
सूर्य से रश्मि को छीन कर,
भू पर विभा उतार लाई !!"ReNu"

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*मानव मन का विकार*

मैं कहती हूँ मैं अच्छी हूँ ,

वो कहते है वो अच्छे हैं ,

मैं कहती हूँ तुम बुरे हो ,

वो कहते हैं तुम बुरे हो ,

फिर बुरा कौन और अच्छा कौन ?

या तो सब अच्छे या सब बुरे ,

या तो सभी अच्छे और बुरे दोनों ,

"शहर से गावं तक जा देखा,

मिला नहीं बुरा कोई अनोखा ,

प्रतिबिंब आईने का जब देखा ,

अपने जैसा ही सबको देखा !!" "ReNu"

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Wednesday, July 10, 2013

*फिर रही हूँ इस समय मैं बादल पर बैठकर*

फिर रही हूँ इस समय मैं बादल पर बैठकर,

भर रही हूँ चाँद-सितारे आँचल में तोड़कर !!

पहाड़ी और घाटियों से तैरती मैं जा रही,

झील और झरनों के ध्वनी पे गुनगुना रही !!

थिरक रहे हैं पवन संग वृक्ष और झाड़ियाँ,

चल रहा साथ मेरे आधा दुधिया शीतल चाँद !!"ReNu" 

 

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Friday, June 21, 2013

"हे भोले भंडारी" (केदारनाथ में महादेव का तांडव)

हे भोले भंडारी,

भक्तों का अपराध तो बताओ त्रिपुरारी ?

क्या सारे भक्त थे पापी ?

जो तुमने अपना त्रिनेत्र खोल डाली,

सही-सलामत है जब गिरिराज कुमारी,

फिर क्यों तुमने भयानक तांडव है मचाई ? 


माना कि भक्तों में थे कुछ नेता और अपराधी ,

इसकेलिए हजारों निर्दोष को सजा क्यों दी ?

क्यों चढ़ा रखी थी भांग तुमने इतनी ?

कि अपने अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया तुमने,

क्या रह गया फर्क देवता और क्रूर दानव में ?

जब निर्दोषों के खून से रंगे हों दोनों....."ReNu"

                  

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Monday, June 17, 2013

"उमड़ हैं आई बदरी सावन की"

उमड़ हैं आई बदरी सावन की ,
दमके दामिनी गरज-गरज के !
निशि अंधियारी जिया घबराये ,
सुधि नहीं मेरी साजन को आये !!

वैरन हो गई मेरी हँसी-ठिठोली ,
रूठ के हैं पिया परदेश सिधारे !
जब से गए कोई चिठ्ठी न पत्री ,
कबसे खड़ी हूँ द्वार बाट निहारे !!"ReNu"
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