Tuesday, July 30, 2013
Thursday, July 11, 2013
*मानव मन का विकार*
मैं कहती हूँ मैं अच्छी हूँ ,
वो कहते है वो अच्छे हैं ,
मैं कहती हूँ तुम बुरे हो ,
वो कहते हैं तुम बुरे हो ,
फिर बुरा कौन और अच्छा कौन ?
या तो सब अच्छे या सब बुरे ,
या तो सभी अच्छे और बुरे दोनों ,
"शहर से गावं तक जा देखा,
मिला नहीं बुरा कोई अनोखा ,
प्रतिबिंब आईने का जब देखा ,
अपने जैसा ही सबको देखा !!" "ReNu"
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Wednesday, July 10, 2013
*फिर रही हूँ इस समय मैं बादल पर बैठकर*
फिर रही हूँ इस समय मैं बादल पर बैठकर,
भर रही हूँ चाँद-सितारे आँचल में तोड़कर !!
पहाड़ी और घाटियों से तैरती मैं जा रही,
झील और झरनों के ध्वनी पे गुनगुना रही !!
थिरक रहे हैं पवन संग वृक्ष और झाड़ियाँ,
चल रहा साथ मेरे आधा दुधिया शीतल चाँद !!"ReNu"
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Friday, June 21, 2013
"हे भोले भंडारी" (केदारनाथ में महादेव का तांडव)
हे भोले भंडारी,
भक्तों का अपराध तो बताओ त्रिपुरारी ?
क्या सारे भक्त थे पापी ?
जो तुमने अपना त्रिनेत्र खोल डाली,
सही-सलामत है जब गिरिराज कुमारी,
फिर क्यों तुमने भयानक तांडव है मचाई ?
माना कि भक्तों में थे कुछ नेता और अपराधी ,
इसकेलिए हजारों निर्दोष को सजा क्यों दी ?
क्यों चढ़ा रखी थी भांग तुमने इतनी ?
कि अपने अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया तुमने,
क्या रह गया फर्क देवता और क्रूर दानव में ?
जब निर्दोषों के खून से रंगे हों दोनों....."ReNu"
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Monday, June 17, 2013
"उमड़ हैं आई बदरी सावन की"
उमड़ हैं आई बदरी सावन की ,
दमके दामिनी गरज-गरज के !
निशि अंधियारी जिया घबराये ,
सुधि नहीं मेरी साजन को आये !!
वैरन हो गई मेरी हँसी-ठिठोली ,
रूठ के हैं पिया परदेश सिधारे !
जब से गए कोई चिठ्ठी न पत्री ,
कबसे खड़ी हूँ द्वार बाट निहारे !!"ReNu"
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दमके दामिनी गरज-गरज के !
निशि अंधियारी जिया घबराये ,
सुधि नहीं मेरी साजन को आये !!
वैरन हो गई मेरी हँसी-ठिठोली ,
रूठ के हैं पिया परदेश सिधारे !
जब से गए कोई चिठ्ठी न पत्री ,
कबसे खड़ी हूँ द्वार बाट निहारे !!"ReNu"
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Monday, May 27, 2013
! भगवान बन न मंदिर में बैठ !
दे इतनी न पीड़ा मुझको ,
कि तुम से नफरत कर बैठूं !
दे इतनी न खुशियाँ मुझको ,
कि दर्द औरों का समझ न सकूँ !!
दे इतना न आंसूं मुझको ,
कि अस्तित्व तेरा ही बह जाये !
फिर कोई न पूजे तुमको ,
न कोई तुम पर विश्वास करे !!
कुछ तो ऐसा तू खेल रचा ,
अपने होने का प्रमाण तो दे !!
भगवान बन न मंदिर में बैठ ,
आ साथी बनकर गले लगा !!
आ फिर से बंसी की धुन से ,
जानवरों में भी प्यार जगा !
आ कर फिर से मानवता का ,
मानव को तू का पाठ पढ़ा !!
कि तुम से नफरत कर बैठूं !
दे इतनी न खुशियाँ मुझको ,
कि दर्द औरों का समझ न सकूँ !!
दे इतना न आंसूं मुझको ,
कि अस्तित्व तेरा ही बह जाये !
फिर कोई न पूजे तुमको ,
न कोई तुम पर विश्वास करे !!
कुछ तो ऐसा तू खेल रचा ,
अपने होने का प्रमाण तो दे !!
भगवान बन न मंदिर में बैठ ,
आ साथी बनकर गले लगा !!
आ फिर से बंसी की धुन से ,
जानवरों में भी प्यार जगा !
आ कर फिर से मानवता का ,
मानव को तू का पाठ पढ़ा !!
मधुर मुरली की धुन अब तेरी ,
और नहीं दिल बहला पायेगी !
मुरली त्याग, सुदर्शन पकड़ ,
नहीं तो मानवता शर्मसार हो जाएगी !! "ReNu"
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