बौरायी है पवन बसंती,
पल-पल अपनी दिशा बदलती !
पेड़ों को झकझोर रही है,
फूल-पत्तों को तोड़ रही है !
तितलियों को सता रही है,
जबरन साथ में उड़ा रही है !
बौरायी है पवन बसंती.....
सांय-सांय कर कभी डराती,
पत्र-दलों को नाच-नाचती !
कभी गगन में ऊँचा ले जाती,
कभी धरा पर धम्म से गिराती !
बौरायी है पवन बसंती.....
अल्हड़ और मदमस्त बसंती,
अपनी ताकत पर इतराती !
दीवारों से जा कर टकराई,
बौखलाई फिर वापस आई !
बौरायी है पवन बसंती..... "ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"
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