उदित थे तुम श्याम गगन में
सौम्य, दिव्य तारा बनकर !
पर तुमको पहचान सकी न
मैं अनभिज्ञ, मूढ़, अज्ञानी !!
हँसकर के साथी फिर तुमने
बरसाया स्वर्ग-सुधा अंबर से !
रिक्त, शुष्क हृदय का प्याला
भरा लबालब प्रेम सुधा से !! "ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"
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