Poems from my heart to touch your heart
Tuesday, April 24, 2018
Poems from my heart to touch your heart : ! आ कर देखो बस एक बार !
Poems from my heart to touch your heart : ! आ कर देखो बस एक बार !: चाँद सितारों में जाकर ढूंढा, मेघ बयारों से जाकर पूछा, जाने वाले कहाँ चले जाते हैं, दे ठौर-ठिकाना उनका बता !! ओ महायात्रा पर जाने वाले, क्यो...
Poems from my heart to touch your heart : ! भगवान बन न मंदिर में बैठ !
Poems from my heart to touch your heart : ! भगवान बन न मंदिर में बैठ !: दे इतनी न पीड़ा मुझको , कि तुम से नफरत कर बैठूं ! दे इतनी न खुशियाँ मुझको , कि दर्द औरों का समझ न सकूँ !! दे इतना न आंसूं मुझको , कि अस्...
Monday, April 23, 2018
Monday, March 9, 2015
"नारी, तू नारी की असली दुश्मन"
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
जन्म-उपरान्त पुत्री के अपने,
क्यों रोता है तेरा कोमल मन ?
शिक्षा, वस्त्र, खान-पान में,
क्यों करती पुत्री की उपेक्षा तुम ?
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
बेटे केलिए जो है जायज,
बेटी केलिए वही नाजायज ?
पुरुष प्रबल समाज के भय से,
जंजीरों में उसको लपेटती हो क्यों ?
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
कमजोर, अबला, असहाय का,
अहसास दिलाती हो क्यों हरदम ?
समाज-परिवार ने दिया जो तुमको,
क्यों बेटी को लौटती हो सब तुम ?
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
जब देखोगी बेटी में अपने को,
पूरा करेगी तुहारे सपने को।
मत बन तू पैरों की बेड़ी,
आत्मनिर्भर बनने दे उसको।
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
बहुत सहा है अपमान तूने,
मत कर अब और नादानी।
बन जा तू ढाल अपनी बेटी की,
करने दे जरा उसको भी मनमानी।
नारी, मत बन तू नारी की दुश्मन......"ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"
जन्म-उपरान्त पुत्री के अपने,
क्यों रोता है तेरा कोमल मन ?
शिक्षा, वस्त्र, खान-पान में,
क्यों करती पुत्री की उपेक्षा तुम ?
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
बेटे केलिए जो है जायज,
बेटी केलिए वही नाजायज ?
पुरुष प्रबल समाज के भय से,
जंजीरों में उसको लपेटती हो क्यों ?
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
कमजोर, अबला, असहाय का,
अहसास दिलाती हो क्यों हरदम ?
समाज-परिवार ने दिया जो तुमको,
क्यों बेटी को लौटती हो सब तुम ?
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
जब देखोगी बेटी में अपने को,
पूरा करेगी तुहारे सपने को।
मत बन तू पैरों की बेड़ी,
आत्मनिर्भर बनने दे उसको।
नारी, क्यों बनती हो नारी की दुश्मन ?
बहुत सहा है अपमान तूने,
मत कर अब और नादानी।
बन जा तू ढाल अपनी बेटी की,
करने दे जरा उसको भी मनमानी।
नारी, मत बन तू नारी की दुश्मन......"ReNu"
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Saturday, February 21, 2015
"दासत्व"
हैं निखर आये वो कैसे,
आज मेरे रंग में रंगकर।
सिर झुकाये रहते थे जो,
आज चलते हैं वो तनकर।
मानकर बैठे थे अबतक,
दासता है उनकी किस्मत।
तोड़कर अपने इस भरम को,
हैं अचंभित वो अपने ऊपर।।
हक़ नहीं देता है कोई,
प्यार से अगर मांगने से।
छीनने में ही है भलाई,
हर्षित हैं वो ये जानकर।।
निर्बलों को रौंदना,
सदियों से चलता रहा है।
बदल दिया इस परंपरा को,
बाहुबली से वो मुक्त होकर।। "ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"
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