दे इतनी न पीड़ा मुझको ,
कि तुम से नफरत कर बैठूं !
दे इतनी न खुशियाँ मुझको ,
कि दर्द औरों का समझ न सकूँ !!
दे इतना न आंसूं मुझको ,
कि अस्तित्व तेरा ही बह जाये !
फिर कोई न पूजे तुमको ,
न कोई तुम पर विश्वास करे !!
कुछ तो ऐसा तू खेल रचा ,
अपने होने का प्रमाण तो दे !!
भगवान बन न मंदिर में बैठ ,
आ साथी बनकर गले लगा !!
आ फिर से बंसी की धुन से ,
जानवरों में भी प्यार जगा !
आ कर फिर से मानवता का ,
मानव को तू का पाठ पढ़ा !!
कि तुम से नफरत कर बैठूं !
दे इतनी न खुशियाँ मुझको ,
कि दर्द औरों का समझ न सकूँ !!
दे इतना न आंसूं मुझको ,
कि अस्तित्व तेरा ही बह जाये !
फिर कोई न पूजे तुमको ,
न कोई तुम पर विश्वास करे !!
कुछ तो ऐसा तू खेल रचा ,
अपने होने का प्रमाण तो दे !!
भगवान बन न मंदिर में बैठ ,
आ साथी बनकर गले लगा !!
आ फिर से बंसी की धुन से ,
जानवरों में भी प्यार जगा !
आ कर फिर से मानवता का ,
मानव को तू का पाठ पढ़ा !!
मधुर मुरली की धुन अब तेरी ,
और नहीं दिल बहला पायेगी !
मुरली त्याग, सुदर्शन पकड़ ,
नहीं तो मानवता शर्मसार हो जाएगी !! "ReNu"
Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad, ReNu
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