Sunday, June 16, 2013

"उमड़ हैं आई बदरी सावन की"

उमड़ हैं आई बदरी सावन की ,
दमके दामिनी गरज-गरज के !
निशि अंधियारी जिया घबराये ,
सुधि नहीं मेरी साजन को आये !!

वैरन हो गई मेरी हँसी-ठिठोली ,
रूठ के हैं पिया परदेश सिधारे !
जब से गए कोई चिठ्ठी न पत्री ,
कबसे खड़ी हूँ द्वार बाट निहारे !!"ReNu"
 Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"

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