Tuesday, March 26, 2013

! ये न तेरा शहर ये न मेरा शहर !

ये न तेरा शहर ये न मेरा शहर
ईंट पत्थर से बने इंसानों का शहर
रोज मरते हम रोज बिकते हैं हम
चंद लोगों की मर्जी पर जीते हैं हम
इंसानों का नहीं ये हैवानों का शहर !!

        ये न तेरा शहर ये न मेरा शहर......
 

माँ बहनों की लगती यहाँ बोलियाँ
रोटियों के लिए वो हैं बिकती यहाँ
संबंधों की उड़ रही है यहाँ धज्जियाँ
सम्पत्ति के लिए हो रहे क़त्ल यहाँ
पैसों का शहर ये जमीनों का शहर !!

          ये न तेरा शहर ये न मेरा शहर......
 

मंदिर-मस्जिद में बांटे हुए हैं हमें
क्षेत्र, भाषा के नाम पर लड़वाते हमें
हमें खेलाकर यहाँ खून की होलियाँ
खुद वहाँ मना रहे हैं
वो रंगरेलियाँ
नेताओं का शहर धर्मगुरुओं का शहर !!

         ये न तेरा शहर ये न मेरा शहर......"ReNu"
 Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"

 

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