Tuesday, March 19, 2013

बेनाम रिश्ता

बैचेन होता है जब भी वहाँ तू ,
धड़कने क्यों मेरी यहाँ बढ़ जाती !!


ख़ामोशी की जुबां होती नहीं फिर ,
बिना कुछ कहे क्यों दिल सुन लेता ?


क्या नाम दूँ इस बेनाम रिश्ते को ?
बिना रिश्ते का जो रिश्ता बन गया है !!


छोटा सा है पर तू बड़ा ही सयाना,
बातें करे तू ऐसे जैसे हो नाना !!


नाते-रिश्तों को मैं भूल चुकी थी,
जिम्मेदारियों से मुख मोड़ चुकी थी !!


जीने की चाहत रही थी न बाकी,
ऐसे में आया तू ओ मेरे साथी !!


तेरी मासूमियत, तेरी बेतुकी बातें,
मेरे लिए जगना सारी-सारी रातें !!


बनके तू आया था मेरा फरिश्ता ,
जन्म-जन्म तक रहे ये बेनाम रिश्ता !!"ReNu"


Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"

 

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