Tuesday, September 11, 2012

नारी


ना ही है कोरी कविता यह,
ना ही मात्र कोई कल्पना है,
सदियों से आहत मन की यह ,

ह्रदय से निकली हुई व्यथा है !!

हुंकार उठे हैं जब ह्रदय से,
तो चलेंगे अब शब्दों के तीर,
कौन कहाँ होता है घायल,
किसको ख़बर रहेगी फिर !!


ले और न परीक्षा सहन शक्ति का,
मत ढोंग रचा तू भक्ति का,
पहले घर में दे सम्मान हमें,
फिर मंदिर में जाकर पूज हमें !!

गुण-गान रचनाओं में करते हो,
प्रेरणा के स्रोत बताते हो,
पर लौट के घर जब आते हो,
तो ढोल गवार बुलाते हो !!

ममता से परिपूर्ण हैं हम,
करुणा के ठहरे झील हैं हम,
पर मत समझो कमजोर हमें,
दुर्गा-काली के रूप हैं हम !!

धरा पर अगर न होते हम,
सृजन न तुम्हारा करते हम,
पोषण न तुम्हारा करते हम,
तो, कहो कहाँ से आते तुम?

करुणा के सागर कहलाते हो,
फिर मूक बने क्यों बैठे हो,
जन्म से पहले मारना तय था,
तो, ऐसा जीवन देते हो क्यों?

क्यों फटा नहीं बज्र का ह्रदय,
क्यों किया नहीं शापित घर को,
जिस घर में हुआ यह जघन्य पाप,
क्यों संतान-वंचित किया नहीं उसको?


                                   Copyright© reserved by
Poetess Asha Prasad "ReNu"                                     

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