Tuesday, September 4, 2012

है क्या कोई प्रतीक्षारत ?


हिम शिलाखंड पिघलकर 
गिरी के शिखर से उतरकर 
शीतल जल की ये प्रबल धार
बढ़ती करती हुई भीषण नाद !


गिरी के छाती को चीर कर 

शिला चट्टानों को तोड़ कर
करती नूतन पथ का निर्माण
बढ़ती रहती प्रति क्षण अविरल !

उठता फेनिला ये सफेद झाग
क्या है तेरे ह्रदय का उन्माद ?
कहाँ जाने को इतनी आकुलता
है क्या कोई प्रतीक्षारत ?
     Asha Prasad "ReNu"

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