Friday, September 7, 2012

एकाकीपन

ये गहराती हुई शाम, 
बढता हुआ दर्द का एहसास, 
ढलता हुआ सूरज,
पंछियों की कोलाहल,

मंदिर के आरती की गूंज,
धुंधलाये हुए रास्ते,
ये शरद हवा के थपेड़े,
सांसों की अनियमितता,
लड़खड़ाते हुए कदम,
आँखों में छलके हुये आँसू,
एसे में....
चुपके से ख्यालों में तेरा आना,
आकर धीरे से मुस्कुराना,
इस शाम की तन्हा उदासी में,
जैसे....
हजारों दीपक का एक साथ जल जाना !!
तेरा मुस्कुराना ....:)) 

                             "ReNu"  

                                               Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"          

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