Tuesday, September 11, 2012

(ग़ज़ल) मेरी नज़्म है ये किसी और के लिए


( नज़्म=कविता, उलफ़त= दोस्ती)
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मेरी 
ये नज़्म है किसी और के लिए,

ज़ुल्मोसितम उनका सुना रहे हैं हम !!

किसी का नुक़्स छुपाना ख़ूबी है मगर,
कभी-कभी 
ये पर्दा भी उठा रहे हैं हम !!


किसी की बेवफ़ाई पे हम फिदा हो गए,
वफ़ा क्या है ये उनको जता रहे हैं हम !!


रंजिश में मुहब्बत हम निभाते गए,
उलफ़त क्या है उनको सिखा रहे हैं हम !! 

महफ़िल में तमाशाई वो बनके आये हैं, 
दस्तूर-ए-ज़माना निभा रहे हैं हम !!"ReNu"



Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"    

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