Friday, September 7, 2012

सरस्वती स्तुति


हे श्रुतदेवी, तुम मुझको वर दे कोई ऐसा,
शब्द-हिमालय से निकालूँ कोई ऐसी गंगा,
जो ध्वनि मात्र से कर दे सबके मन को चंगा ।


बारिस हो शब्दों की चटके नवकोपलें ऐसा,

महक उठे हृदय-उपवन रजनीगान्धा जैसा ।
कोमल शब्द-सुरों से बनाऊँ एक अनोखा राग,
वीणा के सप्त स्वर से फूटे प्रेम की धार ।

बोऊं शब्द-बीज धरा में जो पेड़ उगाये ऐसा,
जीवन को दे विश्राम क्षुधा तृप्त करे मन का ।
रंग-बिरंगी शब्द-मोतियों से बनाऊं माला,
जिसमें लगे हों एकता का अटूट धागा ।

फूकूं शब्द-शंख जिससे शंख-नाद हो ऐसा,
ॐ शांति शब्द से गूंज उठे ब्रह्माण्ड समूचा ।
हे श्रुतदेवी, तुम मुझको वर दे दे अब ऐसा.....

                                                           Asha Prasad "ReNu"

No comments:

Post a Comment