Wednesday, September 12, 2012

दिल हो गया है बंजर

दिल हो गया है बंजर,
हर रिश्ता यहाँ शुष्क है !


मंदिर-मस्जिद की बस्ती है यह,
यहाँ इन्सानियत ख़ुदग़रज़ है !

गगनचूंबी इमारतों में यहाँ,
दम तोड़ रहा ईमान है !

शिला को नहलाते हैं दूध से,
क्षुधा से व्याकुल नन्हीं जान है !

मज़हब के नाम पर हलाल होते हैं लोग,
क्या ख़ुदा का यही पैग़ाम है?"ReNu"
 


 Copyright© reserved by Poetess Asha Prasad "ReNu"

No comments:

Post a Comment